"नारी" — यह शब्द ही शक्ति, समर्पण और सहनशीलता का प्रतीक है। समय के साथ जैसे-जैसे समाज ने प्रगति की, महिलाओं ने भी अपने कदम आगे बढ़ाए और केवल घर की चारदीवारी तक सीमित न रहकर बाहर की दुनिया में भी अपनी प्रतिभा और क्षमता का लोहा मनवाया। आज की नारी न केवल एक समर्पित गृहिणी है, बल्कि एक सफल प्रोफेशनल, उद्यमी, वैज्ञानिक, अफसर, कलाकार और बहुत कुछ है।इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे महिलाएं दोहरी जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी अपने आत्मबल, कार्यक्षमता और सहनशीलता के दम पर समाज में एक नई मिसाल कायम कर रही हैं।
भारत का पारंपरिक समाज महिलाओं को घरेलू भूमिका में ही देखता रहा है। वे मुख्यतः परिवार, बच्चों और रसोई तक सीमित मानी जाती थीं। लेकिन स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज तक की यात्रा में महिलाओं ने यह साबित कर दिया है कि वे हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सकती हैं।
आज की महिला आधुनिक है, शिक्षित है, जागरूक है और आत्मनिर्भर भी। वह यह जानती है कि अपने सपनों को कैसे पूरा करना है और समाज के बनाए सीमित दायरे को कैसे तोड़ना है। वह:
यह संतुलन साधना आसान नहीं, लेकिन आज की महिलाएं इसे बख़ूबी कर रही हैं।
घर के काम को अक्सर "काम" नहीं माना जाता — न ही इसका कोई वेतन होता है, न ही कोई सामाजिक मान्यता। पर सच्चाई यह है कि घर को चलाना, बच्चों की परवरिश, बुजुर्गों की देखभाल, हर छोटी-बड़ी जरूरत को समय पर पूरा करना एक पूर्णकालिक नौकरी से कम नहीं है।महिलाएं:
कभी महिलाओं के लिए ऑफिस जाना एक असामान्य बात थी, लेकिन आज:
इसके बावजूद, वे अपने आत्मविश्वास से नई ऊँचाइयाँ छू रही हैं।
कामकाजी महिलाओं का सबसे बड़ा कौशल है — समय प्रबंधन। वे मिनटों में दिन का शेड्यूल बनाती हैं और उसी अनुशासन से उसे निभाती हैं।
यह सब करते हुए भी वे मुस्कराना नहीं भूलतीं।
दोहरी जिम्मेदारी निभाते हुए महिलाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:
इन सबसे जूझते हुए भी महिलाएं डटकर खड़ी रहती हैं — क्योंकि वे जानती हैं कि उनका संघर्ष सिर्फ उनका नहीं, अगली पीढ़ी की राह भी आसान करेगा।
जब महिला बाहर काम करती है, तो परिवार की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
समाज को भी यह समझना होगा कि महिला अकेले "सुपरवुमन" नहीं, बल्कि एक इंसान है जिसे सहयोग और सम्मान की ज़रूरत है।
इन सभी महिलाओं में एक बात समान है — दृढ़ संकल्प और संतुलन की शक्ति।
आज की नारी ने साबित कर दिया है कि वह किसी भी रूप में सक्षम है, पर अब बारी समाज की है:
केवल तभी "दोहरी जिम्मेदारी" वास्तव में "साझा जिम्मेदारी" बन सकेगी।
महिला कोई वस्तु नहीं, कोई सीमा नहीं — वह शक्ति है, जो हर दिन खुद को नए रूप में गढ़ती है। दोहरी जिम्मेदारी उसके लिए बोझ नहीं, बल्कि उसकी ताक़त है।आज की नारी वह सूरज है, जो न केवल खुद रोशनी फैलाता है बल्कि अपने चारों ओर के संसार को भी उजागर करता है। उसे अब सहानुभूति नहीं, बल्कि सम्मान चाहिए। उसके योगदान को सराहना नहीं, स्वीकृति चाहिए। और उसके हर संघर्ष के पीछे छिपी कहानी को मंच चाहिए।क्योंकि जब नारी अव्वल होती है — घर, समाज, देश सब जीतता है।