07 Jul
07Jul

भूमिका:

"नारी" — यह शब्द ही शक्ति, समर्पण और सहनशीलता का प्रतीक है। समय के साथ जैसे-जैसे समाज ने प्रगति की, महिलाओं ने भी अपने कदम आगे बढ़ाए और केवल घर की चारदीवारी तक सीमित न रहकर बाहर की दुनिया में भी अपनी प्रतिभा और क्षमता का लोहा मनवाया। आज की नारी न केवल एक समर्पित गृहिणी है, बल्कि एक सफल प्रोफेशनल, उद्यमी, वैज्ञानिक, अफसर, कलाकार और बहुत कुछ है।इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे महिलाएं दोहरी जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी अपने आत्मबल, कार्यक्षमता और सहनशीलता के दम पर समाज में एक नई मिसाल कायम कर रही हैं।


1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और सामाजिक बदलाव

भारत का पारंपरिक समाज महिलाओं को घरेलू भूमिका में ही देखता रहा है। वे मुख्यतः परिवार, बच्चों और रसोई तक सीमित मानी जाती थीं। लेकिन स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज तक की यात्रा में महिलाओं ने यह साबित कर दिया है कि वे हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सकती हैं।

  • रानी लक्ष्मीबाई, सार्जेंट प्रेमलता, इंदिरा गांधी, कल्पना चावला जैसी अनेक महिलाओं ने यह संदेश दिया कि नारी सिर्फ घर चलाने के लिए नहीं बनी, वह देश और दुनिया भी चला सकती है।
  • शिक्षा के प्रसार और समान अधिकारों की लड़ाई ने महिलाओं को एक नई दिशा दी।

2. आज की महिला: एक नया रूप

आज की महिला आधुनिक है, शिक्षित है, जागरूक है और आत्मनिर्भर भी। वह यह जानती है कि अपने सपनों को कैसे पूरा करना है और समाज के बनाए सीमित दायरे को कैसे तोड़ना है। वह:

  • ऑफिस में मीटिंग की अगुवाई करती है,
  • बच्चों की ऑनलाइन क्लास संभालती है,
  • सब्जी-राशन का ध्यान रखती है,
  • और साथ ही अपनी पहचान भी बनाती है।

यह संतुलन साधना आसान नहीं, लेकिन आज की महिलाएं इसे बख़ूबी कर रही हैं।


3. घर की जिम्मेदारी: बिना वेतन का काम

घर के काम को अक्सर "काम" नहीं माना जाता — न ही इसका कोई वेतन होता है, न ही कोई सामाजिक मान्यता। पर सच्चाई यह है कि घर को चलाना, बच्चों की परवरिश, बुजुर्गों की देखभाल, हर छोटी-बड़ी जरूरत को समय पर पूरा करना एक पूर्णकालिक नौकरी से कम नहीं है।महिलाएं:

  • दिन की शुरुआत रसोई से करती हैं और अंत बच्चों के गृहकार्य से,
  • बिना छुट्टी के, बिना थके,
  • हर सदस्य की जरूरतों का ख्याल रखते हुए खुद को अक्सर अनदेखा कर देती हैं।

4. प्रोफेशनल दुनिया में महिलाओं की भागीदारी

कभी महिलाओं के लिए ऑफिस जाना एक असामान्य बात थी, लेकिन आज:

  • महिलाएं डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, अफसर, शिक्षक, पत्रकार, वैज्ञानिक, और आंत्रप्रेन्योर के रूप में हर क्षेत्र में अग्रणी हैं।
  • वर्क-फ्रॉम-होम संस्कृति ने जहाँ एक ओर सहूलियत दी, वहीं दूसरी ओर उनकी ज़िम्मेदारियाँ और बढ़ा दीं।
  • पुरुष सहकर्मियों के समान कार्य करते हुए भी महिलाएं कई बार कम वेतन और अधिक अपेक्षाओं का सामना करती हैं।

इसके बावजूद, वे अपने आत्मविश्वास से नई ऊँचाइयाँ छू रही हैं।


5. समय प्रबंधन: एक अदृश्य कला

कामकाजी महिलाओं का सबसे बड़ा कौशल है — समय प्रबंधन। वे मिनटों में दिन का शेड्यूल बनाती हैं और उसी अनुशासन से उसे निभाती हैं।

  • सुबह बच्चों के टिफिन से लेकर ऑफिस की मीटिंग तक,
  • दोपहर में बुजुर्गों की दवा से लेकर शाम के खाने तक,
  • और फिर देर रात तक किसी प्रोजेक्ट पर काम करना,
  • ये सब एक दिनचर्या बन जाता है।

यह सब करते हुए भी वे मुस्कराना नहीं भूलतीं।


6. मानसिक और शारीरिक चुनौतियाँ

दोहरी जिम्मेदारी निभाते हुए महिलाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:

  • तनाव: काम और घर दोनों की अपेक्षाओं को पूरा करने का दबाव।
  • थकान: लगातार काम, नींद की कमी और स्वास्थ्य पर असर।
  • गिल्ट फीलिंग: कहीं एक भूमिका में थोड़ा भी कम होने पर आत्मग्लानि।

इन सबसे जूझते हुए भी महिलाएं डटकर खड़ी रहती हैं — क्योंकि वे जानती हैं कि उनका संघर्ष सिर्फ उनका नहीं, अगली पीढ़ी की राह भी आसान करेगा।


7. पति और परिवार की भूमिका

जब महिला बाहर काम करती है, तो परिवार की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।

  • एक समर्थ पति, जो घर के कामों में हाथ बंटाए और फैसलों में साथ दे,
  • समझदार सास-ससुर, जो पुराने विचारों को छोड़ नए ज़माने के अनुसार चलें,
  • और सहयोगी बच्चे, जो मां की मेहनत को समझें — यही किसी भी महिला की असली ताक़त बनते हैं।

समाज को भी यह समझना होगा कि महिला अकेले "सुपरवुमन" नहीं, बल्कि एक इंसान है जिसे सहयोग और सम्मान की ज़रूरत है।


8. सफलता की कहानियाँ

  • फाल्गुनी नायर (Nykaa की संस्थापक) — जिन्होंने 50 की उम्र में व्यवसाय शुरू किया और अरबों की कंपनी खड़ी कर दी।
  • पीवी सिंधु, मिताली राज, गगनदीप कौर, और अन्य खिलाड़ियों ने दिखाया कि नारी मैदान में भी किसी से कम नहीं।
  • किरण मजूमदार शॉ, इंदिरा नूयी, चंद्रा कोचर जैसे नाम हर उस लड़की के लिए प्रेरणा हैं जो सोचती है कि क्या वह सबकुछ कर पाएगी?

इन सभी महिलाओं में एक बात समान है — दृढ़ संकल्प और संतुलन की शक्ति।


9. भविष्य की दिशा

आज की नारी ने साबित कर दिया है कि वह किसी भी रूप में सक्षम है, पर अब बारी समाज की है:

  • कार्यस्थलों को अधिक लचीला और समान बनाना होगा,
  • महिलाओं के लिए मानसिक स्वास्थ्य सुविधाएं आसान करनी होंगी,
  • पैतृक ज़िम्मेदारियों में पुरुषों की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी

केवल तभी "दोहरी जिम्मेदारी" वास्तव में "साझा जिम्मेदारी" बन सकेगी।


10. निष्कर्ष: नारी की जीत, समाज की जीत

महिला कोई वस्तु नहीं, कोई सीमा नहीं — वह शक्ति है, जो हर दिन खुद को नए रूप में गढ़ती है। दोहरी जिम्मेदारी उसके लिए बोझ नहीं, बल्कि उसकी ताक़त है।आज की नारी वह सूरज है, जो न केवल खुद रोशनी फैलाता है बल्कि अपने चारों ओर के संसार को भी उजागर करता है। उसे अब सहानुभूति नहीं, बल्कि सम्मान चाहिए। उसके योगदान को सराहना नहीं, स्वीकृति चाहिए। और उसके हर संघर्ष के पीछे छिपी कहानी को मंच चाहिए।क्योंकि जब नारी अव्वल होती है — घर, समाज, देश सब जीतता है।

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